Thursday 8 August 2013

" जब मन खुलेगा ... तभी दिल खुलेंगे ...






         मन .... मन , शायद इंसान की जिंदगी में ईश्वर का सबसे चंचल उपहार है | मन , जो हर परेशानी से बेपरवाह , बेफिक्र रहता है..| मन जो हर परिस्थिति में खुद को खुश रखने के सपने देखता है | और दिल , दिल जो हर छोटी सी बात पर खामोश हो जाता है, जिसके लिए हर परिस्थिति ही एक चक्रव्यूह बन जाती है | और इंसान , इंसान इन दोनों को ही खुश किये बिना नहीं जी सकता ... मन का इंसान पर बहरी नियंत्रण होता है.. और दिल का अंदर से ..

       मन जो केवल वही बात मानता है जिसे मन चाहता है, जो कि व्यक्ति बाहरी रुप से ग्रहण करता है, फ़िर उससे किसी को कितनी भी चोट लगती हो उससे मन को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है, अगर चाही वस्तु मन को नहीं मिली तो हमें बहुत बुरा लगता है और असंतुष्ट असहज रहता है। मन जो चाहता है हासिल करना चाहता है, फ़िर चाहे वह बुरा हो या भला, इससे मन को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। 

दिल को सहारा  चाहिए 

मन को किनारा!!
दिल सहारे में डूब मुस्कराता है
मन किनारे के लिए जाल बिछाता है!
दिल की दुनिया अपनी होती है 
मन की तो ठोक-ठाक  के  बसाई जाती है !
दिल जानता भी नहीं क्या अच्छा है क्या बुरा
मन हर बार तौलता है क्या और कितना भला ! 
दिल का तार  धरकन से जुड़ा 
मन तो  मस्तिस्क के  उलझन में पड़ा  !
दिल में खोये  तो........ आप किसी के और आपका कोई हो गया 
मन में खोये तो औरो का  क्या.... आप ही अपने ना हुए ! 


          दिल जो केवल वही बात मानने को तैयार होता है जो कि व्यक्ति आत्मिक रुप से ग्रहण कर सकता हो, और उससे किसी को दुख नहीं पहुंचता हो, जो दिल चाहता है वह अगर उसे नहीं मिलता हो तो भी वह संतुष्ट रहता है कि चलो शायद अपना नहीं था।

जब हम कहते हैं कि अपने दिल के बात बताऊँ तो वह एक सच्ची बात होती है, परंतु जब हम मन की बात करते हैं तो वह हमारे ऊपरी आवरण के अहम को संतुष्ट को करने वाली बात करते हैं।

      अगर दिल की बात पूरी नहीं होती है तो हमें बुरा नहीं लगता है, कि चलो कोई बात नहीं कहकर अपना दिल बहला लेते हैं। परंतु अगर मन की बात पूरी नहीं होती है तो गहरी टीस हमेशा मन के किसी कोने में पलती रहती है और धीरे धीरे अहम के रुप में परिवर्तित होती जाती है।
  
     दिल और मन कहने को हम एक रुप में ही कहते हैं, परंतु दोनों के कर्म और सोच बिल्कुल अलग हैं, दिल अगर साधु प्रकृति का है तो मन दुष्ट प्रकृति का है।
     
     और इसी लिए मन जब तक ईमान दार नहीं होगा.. जब तक हमारा मन ही नहीं खुलेगा , तब तक दिल की सच्चाई से हम अनजान रहेंगे , तब तक हमारे दिल में क्या है ये खुलकर हमारे सामने नहीं आ पायेगा .. इस लिए " जब मन खुलेगा तभी दिल खुलेंगे "

मैल जब मन का धुलेगा , तभी दिल से मेल होगा ,
खलेंगे दोनों के बंधन , तभी खुल कर खेल होगा ,
जिंदगी की परीक्षा है , सभी को देनी पड़ेगी ,
कभी कोई पास होगा , कभी कोई फेल होगा |

दिल और मन का विश्लेषण कैसा लगा, आपके ऊपर क्या हावी रहता है, दिल से बताईयेगा मन से नहीं।

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