Thursday 10 October 2013

वो ख्वाब अगर है तो, बिखर क्यूँ नही जाता ...



बेनाम सा ये दर्द, ठहर क्यूँ नही जाता,
जो बीत गया है वो , गुज़र क्यूँ नही जाता,

वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ में,
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नही जाता,

मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा,
जाते हैं जिधर सब, मैं उधर क्यूँ नही जाता,

वो नाम है बरसों से, न चेहरा न बदन है,
वो ख्वाब अगर है तो, बिखर क्यूँ नही जाता 




                                                                                                   --   आशीष (जो लिखता है दिल से )

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